Saturday, 16 November 2019

बम्बई !

मैं उसे सपनो का शहर कहता था, वो उसे बम्बई कहती थी,

क्युंकि ईस चकाचौंध में काम ढूंढना मेरे लिये आसान नहीं था, और काम मिलना बिलकुल एक सपना

पर वो तो यहीं की थी... ये समुंदर... ये बारिश... ये ट्रेन और ये ट्राफिक...

उस के लिये मानो रत्तीभर मीं नहीं था....

ईस देश के करोडो युवाओ की तहर में भी आया था... कुछ हजार रुपये लेकर.. दो बेग लेकर... और साथ सिने में समेटे किमती सपने लेकर....

वो यहां जी रही थी... जी भी कहां रही थी... मानो जिंदगी काट रही थी....
ओफिस से घर... घर से ओफिस... बस मशीन बन गई थी...

कहते है ये सपनो की नगरी.. सोती नहीं है... जागती भी कहां है भाई.... सिर्फ भागती है...

ईसकी नसो में... लोकल ट्रेन.. यानि की लाईफ लाईन दोडती है... और ईसे लाईफ लाईन कहेना मेरे लिये तो जायझ भी है... क्युं की ईसी की भीडने तो मुजे उससे मिलाया था...

अगर उस दिन उस आदमीने मुजे धक्का न दिया होता.. तो में लेडीझ स्पेशियल में न चडा होता.. 

जी हां, लेडिझ स्पेशियल... बात थोडी कोमिक जरूर है... पर एसा हुआ था...

ये थी लेडीज स्पेशियल... और उपर से फास्ट यानि की अब तो ये ट्रेन अंधेरी ही रुकने वाली थी.. 

और 5 मिनिट मुजे अहीं... पुलीस और आंटीयो की डांट सुनने में बीतानी थी... पर यै 5 मिनट.. ये 

5 मिनटमें मुजे तुम दिखी...

हाथ में... मोबाईल लेके ट्रेन में टिकटोक बनाती हुई..

अपने चहेरे पे से बालो की लट हटाती हुई...

वीडियो के लिये जगह बनाती हुई.. .खिलखिलाती हुई..

अंधेरी स्टेशन तो आ गया... पर कुछ जरूर गया..

फिर तो तुम्हे देखने को बेन्ड्रा स्टेशन पर लेडीझ स्पेशियल का ईन्तझार मानो मेरी आदत हो गई..

दिन बीते... महिने बीते... कुछ टिन्डर मेच आये.. कुछ डेट भी हुई... और मानो में उस खिलखिलाहट को भूलने लगा था.. ईस चकाचौंध में खोने लगा था... बियर के घूंट के साथ घर की याद को टालने लगा था... समुंदर की आवाझ में दिल की आवाझ दबाने लगा था... पर

कुछ बाकी सा था..

माहोल अभी भी खाली खाली सा था.... पता नहीं... क्यां ढूंढ रहा था...
पर ये था तो सपनो का शहर... सपने पूरे करने का शहर...

आखिर एक दिन... तुम मिल ही गई... शायद वो शाम तुम भी नहीं भूली... जब ट्रेन में मेरी जेब कटी थी.... तब तुम ही तो मेरे सामने हंसी थी...

टीसीने जब बिना टिकिट पकडा था.. तुममें ही तो मुजे बचाने का जझ्बा था..
न जान न पहचान.. बस वो दी हुई मुस्कान के सहारे ही तुमने मुजे मदद की... और मेंनें तुमसे फ्रेन्डशिप..

माहोल अब कुछ फिल्मी सा था... आशिक में भी दिल्ही का था.. पहली मुलाकात में... स्टेशन की भीड भाड में... मैने पूछ ही लिया... कॅन वी गो फोर अ वॉक

हां, उसे भी समुंदर पसंद था.... फिर तो शामें कटने लगी... समुंदर के पानी में मानो बहने लगी.. कभी वो मेरे पीजीमें आके मेगी बनाती... तो कभी में उसके घर जा के... आळू भिंडी की सब्जी बनाता...

कुछ एसे हालात थे... बिना शब्द के भी वो पल खास थे...

किन्तु परंतु बंधु... ट्विस्ट तो आता ही है... हमारी कहानी में भी विलन की एन्ट्री हो ही गई.. और ये विलन बना वक्त

वो मुजे बम्बई दिखाती गई.. अपने ओफिस से वक्त निकालती गई... मुजे अपने शहर से रुबरु कराती गई..

उसके पास मेरे लिये वक्त ही वक्त था... क्युं की मुजे अकेला फील नहीं होने देना चाहती थी..

मानो वो अपना फिल्मी सपना सच कर रही थी... और में अपने करियर के गोल्स तक पहुंचने में बिझी था... में अपने टार्गेट हिट करने में बिझी था.. बोस को खुश करना ही जैसे मेरा मक्सद था
वो मेरे ओफिस के नीचे खडी रहती... में अपने लेपटोप की स्क्रीन में खोया रहता..

वो मेरे लिये वडापाउं पेक कराती रहती... में उस के फोन्स को कट करता रहता...
फिर भी उस की व्होटस एप चेट का वॉल पेपर में था... और मेरी लेपटोप का वॉल पेपर... मेरा ओकेआर था..
अब
वो उसे सपनो का शहर कहती थी, और में.... बम्बई

1 comment:

Priyanka Chopraને વાંદરાએ લાફો મારી દીધો, ફિલ્મ જેવી ઘટના બની હકીકત!

                તમને Housefull ફિલ્મનો પેલો સીન યાદ છે? જ્યારે ફિલ્મમાં વાંદરો દીપિકા પાદુકોણનો મોબાઈલ લઈને જતો રહે છે, અને અક્ષયકુમાર દીપિક...